Shiv Sati Prem Katha in Hindi – देवी सती ब्रह्मा पुत्र प्रजापति दक्ष और माता प्रसूति की नौंवीं संतान थीं, जिन्होंने अनेकों वर्षों तक ब्रह्मांड स्वामिनी, आदिशक्ति देवी की उपासना करके अपनी पुत्री के रूप में पाया था। उन्होंने यह वचन दिया था कि बड़ी होने पर देवी सती का विवाह शिव से करवाएंगे।

लेकिन ब्रह्म देव की पूजा न करने के कारण प्रजापति दक्ष ने शिव को अपना शत्रु मानने लगे। हालांकि, आदिशक्ति स्वरूपिणी देवी सती, शिव के सीधे और सादगी से प्रेम कर बैठी और अपने पिता के खिलाफ जाकर शिव से विवाह कर लिया। इस कारण प्रजापति दक्ष ने देवी सती से जीवन भर के लिए अपने सारे संबंध समाप्त कर लिए।

शिवजी और माता सती से जुड़ी कथा, जो श्रीमद् देवी भागवत और शक्तिपीठों के कई ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है, वहाँ इस प्रकार है:

इस कथा के अनुसार, देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष थे। सती ने भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन इस विवाह से उनके पिता को संतोष नहीं था। प्रजापति दक्ष ने हरिद्वार में एक महान यज्ञ का आयोजन किया और शिव-सती को यज्ञ से विमुक्त करके सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया।

सती ने नारद से यह सुना तो उन्होंने तत्परता से यज्ञ में शामिल होने का निर्णय लिया, लेकिन शिवजी ने उन्हें बुलाए बिना यज्ञ में जाने का सुझाव दिया। इसके बावजूद, सती ने शिवजी की सलाह को नजरअंदाज करते हुए अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने का निर्णय किया।

जब सती यज्ञ स्थल पर पहुंची, तो उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि यज्ञ में शिवजी को बुलाने के लिए कोई आमंत्रित नहीं किया गया था। सती ने पिता दक्ष से पूछा कि शिवजी को क्यों नहीं बुलाया गया, जिसका उत्तर में दक्ष ने शिवजी का अपमान किया।

देवी सती ने अपने पति का अपमान नहीं सहा और हवन कुंड में कूदकर अपने प्राणों को त्याग दिया। जब शिवजी को यह पता चला, तो उनका क्रोध उग्र हो गया और उन्होंने अपने शिष्य वीरभद्र को दक्ष के सिर को काटने के लिए भेजा।

इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि किसी भी कार्यक्रम या घर में बिना बुलाए जाना सही नहीं है।